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1947 – 1960

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स्‍वतंत्रता-पूर्व अवधि के दौरान, अविभाजित भारत के पूर्वोत्‍तर में असम तेल कंपनी और उत्‍तर पश्चिम भाग में अटोक तेल कंपनी ही देश में अल्‍पतम अन्‍वेषण इनपुट वाली तेल उत्‍पादनशील तेल कंपनियां थीं । भारतीय अवसादी बेसिनों का प्रमुख भाग, तेल और गैस संसाधनों के विकास के लिए अनुपयुक्‍त माना जाता था ।

स्‍वतंत्रता के पश्‍चात, सरकार ने, तीव्र औद्योगिक विकास और प्रतिरक्षा में इसकी रणनीतिक भूमिका के लिए तेल और गैस के महत्‍व को महसूस किया। इसके परिणामस्‍वरूप, 1948 का औद्योगिक नीति विवरण तैयार करते समय देश में पेट्रोलियम उद्योग के विकास को अत्‍यावश्‍यक माना गया।

1955 तक, निजी तेल कंपनियों ने भारत में मुख्‍यत: हाइड्रोकार्बन का अन्‍वेषण किया। असम में, असम तेल कंपनी डिग्‍बोई में (1989 में खोजे गए) तेल का उत्‍पादन कर रही थी और ऑयल इंडिया लिमिटेड (भारत सरकार और बर्मा तेल कंपनी के बीच एक 50 प्रतिशत संयुक्‍त उद्यम) असम में दो नई खोजी गई बड़ी फील्‍डों नहरकतिया और मोरन का विकास करने के काम में लगी हुई थी । पश्चिम बंगाल में, इंडो-स्‍टानवाक पेट्रोलियम परियोजना (भारत सरकार और यूएसए की स्‍टैंडर्ड वैकुअम तेल कंपनी के बीच एक संयुक्‍त उद्यम) अन्‍वेषण कार्य में लगी हुई थी । भारत के अन्‍य भागों और निकटवर्ती अपतट में बड़ा अवसादी क्षेत्र मुख्‍यत: अनन्‍वेषित बना रहा।

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1955 में, भारत सरकार ने, सार्वजनिक क्षेत्र के विकास के भाग के रूप में देश के विभिन्‍न क्षेत्रों में तेल एवं प्राकृतिक गैस संसाधनों का विकास करने का निर्णय लिया। इस उद्देश्‍य के साथ, तत्‍कालीन प्राकृतिक संसाधन एवं वैज्ञानिक अनुसंधान मंत्रालय के अधीन एक अधीनस्‍थ कार्यालय के रूप में 1955 की समाप्ति के आस-पास तेल एवं प्राकृतिक गैस निदेशालय स्‍थापित किया गया । यह विभाग, भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण के भू-वैज्ञानिकों के केंद्रक के साथ स्‍थापित किया गया था ।

यूरोपीय देशों में तेल उद्योग की स्थिति का अध्‍ययन करने और तेल तथा गैस के संभावित आरक्षित भंडारों की खोज करने के लिए भारतीय व्‍यवसायविदों का प्रशिक्षण सुसाध्‍य बनाने के लिए श्री के.डी. मालवीय, तत्‍कालीन प्राकृतिक संसाधन मंत्री के नेतृत्‍व में एक प्रतिनिधिमंडल ने कुछ यूरोपीय देशों का दौरा किया । यूएसए, पश्चिम जर्मनी, रोमानिया और तत्‍कालीन यूएसएसआर के विदेशी विशेषज्ञों ने भारत का दौरान किया और अपनी विशेषज्ञता से सरकार की सहायता की । अंतत: दौरा करने वाले सोवियत विशेषज्ञों ने दूसरी पंचवर्षीय योजना (1856-57–1960-61) में भू-वैज्ञानिक और भू-भौतिकीय सर्वेक्षण और आरंभ किए जाने वाले वेधन प्रचालनों की एक विस्‍तृत योजना तैयार की।

अप्रैल, 1956 में, भारत सरकार ने, औद्योगिक नीति संकल्‍प अपनाया, जिसमें खनिज तेल उद्योग को अनुसूची 'क' उद्योग के बीच रखा गया, जिनका भावी विकास सरकार की अनन्‍य जिम्‍मेदारी थी ।

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तेल एवं प्राकृतिक गैस निदेशालय बनाए जाने के तुरंत पश्‍चात यह बात स्‍पष्‍ट हो गई कि सरकार के अधीनस्‍थ कार्यालय के रूप में इसकी सीमित वित्‍तीय और प्रशासनिक शक्तियों के साथ निदेशालय के लिए दक्षतापूर्वक कार्य करना संभव नहीं होगा । इसलिए अगस्‍त, 1956 में, निदेशालय का दर्जा, वित्‍तीय शक्तियों के साथ बढ़ाकर एक आयोग का कर दिया गया, हालांकि यह सरकार के अधीन बना रहा । अक्‍तूबर, 1959 में आयोग को, भारतीय संसद के एक अधिनियम द्वारा एक सांविधिक निकाय में परिवर्तित कर दिया गया, जिसने आयोग की शक्तियों में और अधिक वृद्धि कर दी । अधिनियम के उपबंधों की शर्त के अधीन तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग के मुख्‍य कार्य थे – ''पेट्रोलियम संसाधनों के विकास के लिए कार्यक्रमों की योजना बनाना, उन्‍हें बढ़ावा देना और कार्यान्वित करना तथा पेट्रोलियम और उसके द्वारा उत्‍पादित पेट्रोलियम उत्‍पादों की बिक्री और अन्‍य ऐसे कार्य करना जो केंद्र सरकार समय-समय पर उसे सौंपे।'' इस अधिनियम में, इसका मैंडेट पूरा करने में ओएनजीसी द्वारा किए जाने वाले क्रियाकलापों और उठाए जाने वाले कदमों की रूपरेखा भी दी गई है।

 

1961 – 1990

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अपने आरंभ के समय से ही ओएनजीसी, पूरे भारत और पर्याप्‍त रूप से समुद्रपारीय क्षेत्रों में फैले अपने क्रियाकलापों से देश के सीमित अपस्‍ट्रीम सेक्‍टर को एक बड़े व्‍यवहार्य कार्य क्षेत्र में रूपांतरित करने में कारक रहा है । ओएनजीसी ने केवल असम में ही नए संसाधन नहीं खोजे बल्कि असम-अराकान फोल्‍ड बेल्‍ट तथा पूर्वी तट बेसिनों (अभितट और अपतट दोनों) में नए पेट्रोलाइफरस क्षेत्र जोड़ते हुए काम्‍बे बेसिन (गुजरात) में नया तेल प्रांत भी स्‍थापित किया।

ओएनजीसी 70 के दशक के प्रारंभ में अपतट में गया और बाम्‍बे हाई, जो अब मुंबई हाई के रूप में जाना जाता है, के रूप में एक बड़ी तेल फील्‍ड की खोज की। पश्चिमी अपतट में बड़ी तेल एवं गैस फील्‍डों की उत्‍तरवर्ती खोजों के साथ-साथ इस खोज ने देश के तेल परिदृश्‍य को बदल दिया । बाद में 5 बिलियन टन से अधिक हाइड्रोकार्बन खोजे गए, जो देश में मौजूद थे । तथापि, ओएनजीसी का सबसे महत्‍वपूर्ण योगदान, इसकी आत्‍मनिर्भरता और एक वैश्विक प्रतियोगी स्‍तर पर अन्‍वेषण एवं उत्‍पादन कोर सक्षमता का विकास है ।

After 1990

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जुलाई, 1991 में भारत सरकार द्वारा अपनाई गई उदारीकृत आर्थिक नीति में, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में सरकारी इक्विटी के आंशिक विनिवेश और अन्‍य उपायों के साथ कोर सेक्‍टरों (पेट्रोलियम सेक्‍टर सहित) के विनियमन और विलाइसेंसीकरण की कोशिश की गई थी। इसके परिणाम के रूप में ओएनजीसी को, फरवरी, 1994 में, कंपनी अधिनियम, 1956 के अंतर्गत एक लिमिटेड कंपनी के रूप में पुनर्गठित किया गया था।

तत्‍कालीन तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग के व्‍यवसाय को 1993 में ऑयल एण्‍ड नैचुरल गैस कॉरपोरेशन लिमिटेड के व्‍यवसाय में परिवर्तित करने के पश्‍चात सरकार ने प्रतियोगितात्‍मक बोलीकरण के जरिए अपने दो प्रतिशत शेयरों का विनिवेश किया। बाद में, ओएनजीसी ने अपने कर्मचारियों को शेयरों का प्रस्‍ताव देकर अन्‍य दो प्रतिशत तक अपनी इक्विटी का विस्‍तार किया।

मार्च, 1999 के दौरान ओएनजीसी, इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) – एक डाउनस्‍ट्रीम विशाल कंपनी और गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (गेल) – एकमात्र गैस विपणन कंपनी ने एक दूसरे के स्‍टॉक में अन्‍योन्‍य धारिता रखने पर सहमति व्‍यक्‍त की। इसने, उनके बीच ऊर्जा मूल्‍य श्रृंखला में घरेलू और समुद्रपारीय दोनों व्‍यवसाय अवसरों के लिए दीर्घावधि कार्यनीतिक गठबंधन का मार्ग प्रशस्‍त किया। इसके परिणामस्‍वरूप सरकार ने ओएनजीसी में अपनी 10 प्रतिशत शेयरधारिता आईओसी को और 2.5 प्रतिशत शेयरधारिता गेल को बेच दी। इसके साथ ओएनजीसी में सरकार की शेयरधारिता घटकर 84.11 प्रतिशत तक आ गई।

वर्ष 2002-03 में ए वी बिरला समूह से एमआरपीएल प्राप्‍त कर लेने के पश्‍चात, ओएनजीसी, डाउनस्‍ट्रीम सेक्‍टर में विविधीकृत हो गया। ओएनजीसी ने शीघ्र ही अपनी सहायक कंपनी ओएनजीसी विदेश लिमिटेड (ओवीएल) के जरिए वैश्विक फील्‍ड में प्रवेश किया। ओएनजीसी ने वियतनाम, सखालिन और सूडान में बड़े निवेश किए हैं और वियतनाम में किए गए अपने निवेश से अपना प्रथम हाइड्रोकार्बन राजस्‍व अर्जित किया।

आज ऑयल एंड नैचुरल गैस कारपोरेशन लिमिटेड (ओएनजीसी) भारत में अन्‍वेषण एवं उत्‍पादन (ई एंड पी) क्रियाकलापों में अग्रणी है, जिसके पास खनिज तेल के कुल भारत के उत्‍पादन का 72 प्रतिशत और प्राकृतिक गैस का 48 प्रतिशत का योगदान है।

ओएनजीसी की ऊर्जा खोज कृष्णा गोदावरी बेसिन के गहरे पानी में वेधन में नये कीर्तिमान स्‍थापित करने या ऊर्जा के नये मानदण्ड (बेंचमार्क) खोजने से कहीं अधिक है । कच्चे तेल की कीमतों में वैश्विक गिरावट के बावजूद, अपतट का उत्‍पादन प्रतिवर्तित (रिवर्स) करते हुए हमने कर्मठतापूर्वक और महत्‍वाकांक्षी रूप से महत्‍वपूर्ण निवेश संबंधी निर्णय लिए । और अब हम ऊर्जा सुरक्षा की खोज में और गहरे अपतटीय गतिविधियों में उद्यमशील हैं । यही वह यात्रा है जिसने हमें फॉर्च्‍युन की ‘’‍विश्‍व की सबसे अधिक प्रशंसित कंपनियों’’ में स्थान दिलाया है और प्लैट्स की शीर्ष 250 रैंकिंग 2014 में वैश्विक ई एंड पी उद्योग में तीसरे स्‍थान पर पहुँचा दिया है ।  

आइए अब हम आपको उस स्‍थान का विहंगम दृश्‍य दिखाते हैं, जहाँ हम खड़े हैं।

अन्वेषण

  •  भारत के सात उत्पादक बेसिनों में से छह की खोज की । भारतीय बेसिनों  में 400 से अधिक खोजों के माध्‍यम से 8.78 बिलियन टन तेल और तेल समतुल्‍य का पता लगाया है ।
  •  ओएनजीसी भारत का सबसे बड़ा अन्वेषण रकबा और खनन पट्टा धारक है ।
  •  देश में स्थापित भंडार का 83% (10.9 बीटी में से) की खोज ओएनजीसी ने की है।
  •  वित्‍त वर्ष 15 में 22 नई खोजें की गयीं - 10 नई संभावनाओं, 12 नए पूलों का पता लगाया गया ।
  •  पिछले दस वर्षो में आगार प्रतिस्‍थापन अनुपात (आरआरआर) एक (3 पी भंडार) से अधिक रहा है ।

उत्पादन

  • ओएनजीसी ने अपने अधिकांश परिपक्व क्षेत्रों (30-50 वर्ष पुराने क्षेत्रों में) में उत्‍पादन गिरावट को रोकने में सक्षम रहा है जो इसकी अधिकांशत: सफल तकनीक सघन आईओआर और ईओआर के माध्‍यम से कंपनी के तेल + तेल समतुल्‍य गैस उत्पादन में 72% का योगदान करते हैं ।
  • 1 अप्रैल 2015 की स्थिति के अनुसार अपतटीय क्षेत्र में 1184 तेल कूप और 151 गैस कूप और अभितट में 4735 तेल कूप और 606 गैस कूप
  • पश्चिमी अपतटीय उत्पादन 7.5% बढ़ा (वित्त वर्ष 2014 के 15.54 एमएमटी की तुलना में वित्‍त वर्ष 2015 में 16.20 एमएमटी)
  • प्रतिदिन 1.2 मिलियन बैरल तेल समतुल्‍य का उत्पादन करता है
  • ओएनजीसी 69% कच्चा तेल और 70% प्राकृतिक गैस का उत्पादन करता है
  • अब तक 1,743 मिलियन मीट्रिक टन तेल समतुल्य का उत्पादन किया
  • 30 से अधिक वर्षों से उत्पादन कर रहे 14 प्रमुख क्षेत्रों में उत्‍पादन गिरावट को रोका, जबकि परिपक्‍व क्षेत्रों में वैश्विक गिरावट दर 7 प्रतिशत है ।