वर्ष 2016 विश्व के काम करने के तरीके में – चाहे वह ऐसा तरीको हो, जिसमें स्वायत्त सरकारें प्रशासन करती हों, नीति निर्माण और बाज़ार हस्तक्षेपों की प्राथमिकताएँ हों, क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय व्यापार साझेदारियों तथा सामान और सेवाओं की आवाजाही के आयाम हों या आर्थिक प्रतिप्राप्ति की गति तथा विकसित बाज़ारों में समेकन और उभरती अर्थव्यवस्थाओं की वृद्धि के प्रक्षेप पथ हों, महत्वपूर्ण रूपांतरण को प्रभावित करने की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण वर्ष हो सकता है।
वर्ष की दूसरी छमाही में, 2016 के प्रारंभ के अपनी ऐतिहासिक गिरावट से कच्चे तेल की कीमतों में प्रतिप्राप्ति के साथ लंबे समय के लिए निवेश और वैश्विक व्यापार पर अधिक उत्साहपूर्ण दृष्टि के साथ प्रगति नहीं हुई क्योंकि विकास के मेज़बान देशों से, विशेष रूप से जून में यूरोपीय यूनियन से यूनाइटेड किंगडम का निर्गमन (ब्रेकसिथ) से उत्पन्न संभावित प्रभावों के इर्द-गिर्द घूमती अनिश्चितता की बड़ी मात्रा और नवंबर 2016 में अमरीका के चुनावों के परिणाम दोनों के कारण पूरे विश्व में संरक्षणात्मक और राष्ट्रीयता की प्रवृत्तियों का जन्म हुआ है।
वृद्धि की दृष्टि से वित्तीय बाज़ारों में उतार-चढ़ाव के साथ और विनिर्माण और व्यापार में चल रही अनिश्चित प्रतिप्राप्ति, जिसने 3.1% की दर (वही जो 2015 में थी) पर वैश्विक जीडीपी वृद्धि को बढ़ावा दिया है, 2016 की दूसरी तिमाही में परिवर्तन हुआ है। इसके अलावा, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अद्यतन वर्ल्ड इकनॉमिक आउटलुक के अनुसार, तेल और गैस उद्योग के 2016 में 3.1 प्रतिशत से बढ़कर 2017 में 3.5 प्रतिशत और 2018 में 3.6 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया गया है।
तथापि, तेल और गैस उद्योग में यह उन्नत दृष्टिकोण एक मज़बूत और स्थायी वैश्विक मांग के पुनर्जीवित होने के एक वैध संकेत के बजाय, बाधित आर्थिक क्रियाकलाप के उत्तरवर्ती दो निरंतर वर्षों में आर्थिक स्थायित्व का प्रदर्शन अधिक है। निम्न उत्पादकता वृद्धि, बढ़ती आय असमानता, निरंतर वस्तु विपणन के उतार-चढ़ाव, निरंतर मांग के बढ़ने और घरेलू खपत में चीन के आगमन, पूंजी सघन विनिर्माण हब से सेवोन्मुखी अर्थव्यवस्था आदि पर उठे सरोकार प्रभुसत्तात्मक सरकारों, नेताओं और अंतर्राष्ट्रीय बहुद्देश्यीय एजेंसियों के लिए स्थायी वृद्धि सृजन की आर्थिक रूपरेखा तैयार करने की संभावना तलाशने के उनके प्रयासों में रोचक प्रश्न उत्पन्न करना जारी रखेंगे।
वर्ल्ड इकनॉमिक आउटलुक (डब्ल्यूईओ) के अनुसार अक्तूबर 2016 में अनुमानित 3.1% पर अनुमानित विश्व वृद्धि, 2017 में बढ़कर 3.5% और 2018 में 3.6% हो जाने का अनुमान लगाया गया है। उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में वृद्धि में प्रत्याशित बढ़ोतरी की तुलना में सुदृढ़ और 2016 की दूसरी छमाही में उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में कुछ उभरते बाज़ारों में प्रत्याशित क्रियाकलाप की तुलना में कमजोर के अनुरूप 2017-18 के पूर्वानुमानों में ऐसी उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में क्रियाकलाप में उछाल आने का विज़न दिया गया है, जो पहले प्रत्याशित की तुलना में तीव्रतर है। जबकि 2017 में व़द्धि के, उभरते बाज़ार और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में सीमांतक रूप से कमजोरे होने का पूर्वानुमान है। व्यापक कहानी, अपरिवर्तित बनी हुई है। निकट और मध्यम अवधि में वैश्विक वृद्धि में अधिकांश पूर्वानुमानित बढ़ोतरी, उभरते बाज़ारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में अपेक्षाकृत अधिक मजबूत क्रियाकलाप से उत्पन्न होगी।
तेल की कीमतों के, 2016 में 43 अमरीकी डालर प्रति बैरल के औसत की तुलना में 2017-18 में 55 अमरीकी डॉलर प्रति बैरल के औसत तक बढ़ने की संभावना है। चीन में पर्याप्त अवसंरचना खर्चों, संयुक्त राष्ट्र में वित्तीय आसानी की प्रत्याशाओं और वैश्विक मांग में सामान्य बढ़ोतरी के परिणामस्वरूप, गैर-इंधन वस्तु की कीमतों, विशेष रूप से धातु की कीमतों के, अपने 2016 के औसत की तुलना में 2017 में सुदृढ़ होने की आशा है। वैश्विक आर्थिक क्रियाकलाप गति पकड़ रहा है परंतु निराशाओं की संभाच उच्च बनी हुई है और नीतियों का सही सेट कार्यान्वित करने और गलत कदमों से बचने के लिए नीति निर्धारकों द्वारा किए जाने वाले प्रयासों के अभाव में इस गति के बने रहने की संभावना नहीं है।
वैश्वीकृत आर्थिक विश्व व्यवस्था, विशेष रूप से द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात की व्यवस्था के सबसे महत्वपूर्ण परिणामों में से एक, अनेक उभरते बाज़ारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में वृद्धि में एक उल्लेखनीय प्रवाह रहा है। अपेक्षाकृत धनवान देशों ने भी प्रगति करना जारी रखा है परंतु पिछले 10 वर्षों में कम प्रभावशाली लाभों के साथ, जब पिछले दशकों के साथ तुलना की जाती है और निश्चत रूप से जब अधिक सफल उभरते बाज़ारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के साथ तुलना की जाती है। चूंकि यह प्रक्रिया गहन वैश्विक आर्थिक एकीकरण एक ही समय पर पड़ता है, इसलिए सामान की निर्बाध आवाजाही और उत्पादन के कारकों के आर्थिक मॉडल पर उत्तरोत्तर प्रश्न उठाए जा रहे हैं क्योंकि व्यापक आधारित वृद्धि की प्रदायगी करने के लिए राजनीतिक रूप से व्यवहार्य एक तंत्र और लोगों की सीमा पार आवाजाही पर प्रतिबंधों और आवक दिखाई देने वाले संरक्षात्मक उपायों के लिए समर्थन को बल मिल रहा है।
व्यापार और पूंजी प्रवाहों पर बढ़ा दिए गए प्रतिबंध, व्यापक आर्थिक लागतें थोपेंगे जो उपभोक्ताओं और उत्पादकों को समान रूप से हानि पहुंचाएंगे जिससे सभी देशों की स्थिति बिगड़ने की संभावना होगी, यदि संरक्षणवाद से प्रतिकार उत्पन्न होता है। चुनौती, यह सुनिश्चित करने के लिए कि लाभ अधिक व्यापक रूप से बांटे जाएं, घरेलू नीतिगत प्रयासों पर टिकते हुए सीमापार आर्थिक एकीकरण से लाभ सुरक्षित करने की होगी।
इसलिए अनेक अर्थव्यवस्थाओं के लिए, आपूर्ति संभावना में वृद्धि करने और पूरे कौशल स्पेक्ट्रम में आर्थिक अवसरों को व्यापक बनाने के लिए निरंतर मांग समर्थन और सुलक्षित संरचनात्मक सुधार मुख्य लक्ष्य बने हुए हैं। प्राथमिकताओं के संक्षिप्त संयोजन,उनके चक्रीय स्थितियाँ, संरचनात्मक चुनौतियों और बढ़ते लचीलेपन की आवश्यकताओं पर निर्भर करते हुए भिन्न-भिन्न हैं।
दीर्घकालिक दृष्टि से, निरंतर तीव्र प्रौद्योगिकीय प्रगति तथा आर्थिक एकीकरण के संदर्भ में समावेशी और स्थायी वृद्धि प्राप्त करने के लिए पर्याप्त शिक्षा, कौशल निर्माण और पुन: प्रशिक्षण तथा पुनर्विनियोजन जैसे आवास और ऋण प्राप्ति को सुसाध्य बनाने की नीतियों की आवश्यकता होगी।
घरेलू मोर्चे पर, नीतियों में मांग को और जहाँ आवश्यक तथा व्यवहार्य हो, तुलन-पत्र के सुधार का समर्थन किया जाना चाहिए और संरचनात्मक सुधारों, सुलक्षित अवसंरचना खर्चों तथा अन्य आपूर्ति अनुकूल वित्तीय नीतिगत उपायों के जरिए उत्पादकता को बढ़ावा दिया जाना चाहिए और विस्थापित व्यक्तियों की प्रौद्योगिकीय परिवर्तनों तथा वैश्वीकरण जैसे संरचनात्मक रूपांतरणों द्वारा सहायता की जानी चाहिए।